सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि हिन्दू महिला के पिता की ओर से आए लोगों को उसकी संपत्ति में उत्तराधिकारी माना जा सकता है। ऐसे परिजनों को परिवार से बाहर का व्यक्ति नहीं माना जा सकता, हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 15.1.डी के दायरे में आएंगे और संपत्ति के उत्तराधिकारी होंगे। फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला के पिता की ओर से आए परिजन हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1956 की धारा 15.1.डी के तहत उत्तराधिकारियों के दायरे में आएंगे। जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि धारा 13.1.डी को पढ़ने से साफ जाहिर है कि पिता के उत्तराधिकारियों को उत्तराधिकारी माना गया है, जो संपत्ति को ले सकते हैं। लेकिन, जब महिला के पिता की ओर से आए उत्तराधिकारियों को शामिल किया जाता है, जो संपत्ति को हासिल कर सकते हैं तो ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि वे परिवार के लिए अजनबी हैं और महिला के परिवार के सदस्य नहीं हैं। कोर्ट ने यह व्यवस्था एक ऐसे मामले में दी, जिसमें एक महिला जग्नो को उसके पति की संपत्ति मिली थी। पति की 1953 में मौत हो गई थी। उसको कोई बच्चा नहीं था, इसलिए कृषि संपत्ति का आधा हिस्सा पत्नी को मिला। उत्तराधिकार कानून, 1956 बनने के बाद धारा 14 के अनुसार, पत्नी संपत्ति की एकमात्र पूर्ण वारिस हो गई। इसके बाद जग्नो ने इस संपत्ति के लिए एक एग्रीमेंट किया और संपत्ति अपने भाई के पुत्रों के नाम कर दी। इसके बाद उनके भाई के बेटों ने 1991 में सिविल कोर्ट में वाद दायर किया कि उन्हें मिली संपत्ति का स्वामित्व उनके पक्ष में घोषित किया जाए। जग्नो ने इसका प्रतिवाद नहीं किया और अपनी संस्तुति दे दी।